नाड़ी देखने की विधि - नाड़ी परिक्षण
नाड़ी परीक्षा का अभ्यास शुरू करने से पहले यह बहुत जरुरी है कि वात, पित्त और कफ के कुपित होने पर प्रकट होने वाले लक्षणों के विषय में पूरी जानकारी प्राप्त कर ली जाय, साथ ही इनके कुपित होने के कारणों के विषय में भी पर्याप्त जानकारी होना जरुरी है ताकि नाड़ी की गति को ठीक से देख के ये जाना जा सके कि कौन सा दोष कुपित हुआ है और उसके कुपित होने से क्या क्या लक्षण पैदा हो सकते है| इस जानकारी के आभाव में नाड़ी देखने में सिर्फ येही जाना जा सकेगा कि नाड़ी की गति सामान्य है या बड़ी हुई है| अन्य कोई बात नहीं जानी जा सकेगी|
नाड़ी देखने कि विधि
महापंडित रावण रचित ग्रन्थ "नाड़ी परीक्षा" में रोग परीक्षा करने के लिए, ये आठ वस्तुओं की परीक्षा करना आवश्यक बताया है --१. नाड़ी
२. मूत्र
३. मल
४. जीभ
५. शब्द
६. स्पर्श
७. नेत्र
८. आकृति
सीधे हाथ के अंगूठे के नीचे कलाई की एक उंगल जगह छोड़कर, वैध अपने सीधे हाथ की पहली दूसरी और तीसरी अंगुली रख अंगूठे को कलाई के नीचे लगा कर नाड़ी दबाये और बाए हाथ से रोगी के हाथ को कोहनी से थाम के रखें|
पहली अंगुली के नीचे वात, बीच की अंगुली के नीचे पित्त और तीसरी अंगुली के नीचे कफ की स्थिति ज्ञात होती है| सूक्षम रीती से मन को एकाग्र करके पूर्ण दत्त चित होकर नाड़ी की इन विभिन्न गतियों को समझना ही नाड़ी परिक्षण है|
नाड़ी का परिक्षण तीन बार करने का विधान किया गया है ताकि बड़ी बारीकी से नाड़ी की स्थिति समझी जा सके| एक बार नाड़ी देखकर छोड़ दे फिर देखे| अपने बाए हाथ से रोगी की कोहनी थाम कर दाहिने हाथ धैर्य और एकाग्रता से चतुर और अनुभवी वैध को यत्त्न पूर्वक नाड़ी परिक्षण करना चाहिए|
वैध रोगी की नाड़ी परिक्षण करते हुए, पहली अंगुली का हल्का दबाव देकर, स्पन्दन का अनुभव करके वाट की स्थिति समझे, दूसरी अंगुली से पित्त की और तीसरी अंगुली से कफ की स्थिति समझें|
इन स्थिति को समझने और इसकी बारीकियों को ठीक-ठीक ढंग से पहिचानने के लिए किसी सिद्धहस्त और पुराने अनुभवी नाड़ी विशेषज्ञ की कृपा और शिक्षा प्राप्त करना बहुत आवश्यक है| ऐसा सुयोग किसी को मिल सके तो उसे अवश्य ऐसे ज्ञानी वैध को गुरु बनाकर सेवा करनी चाहिए और यह नाड़ी परीक्षा का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए| जिन्हें ऐसा सुयोग न मिल सके, वे नाड़ी परिक्षण करने के विषय में आयुर्वेद शास्त्र के ग्रंथों में नाड़ी प्रकरण जहां जहां मिलिए उसका भली भांति अध्यन करके बार बार अपने निजी अभ्यास से नाड़ी परीक्षा करके अपने स्वयं के अनुभव को बड़ा कर स्वयं नाड़ी विशेषयगता अर्जित कर सकते है| धैर्य पूर्वक निरंतर यत्त्न करना जरुरी है| जो ऐसा नहीं कर सके या करना न चाहे उन्हे नाड़ी देखने के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए और खामखां नाड़ी देखने का नाटक नहीं करना चाहिए|